जीवनदायिनी महिलाओं का जीवन खतरे में क्यों ?WHY LIFEGIVIN WOMEN IS IN DANGER?

जीवनदायिनी महिलाओं का जीवन खतरे में क्यों ?WHY LIFEGIVIN WOMEN IS IN DANGER?


जीवनदायिनी महिलाओं का जीवन खतरे में क्यों?

भारत में महिलाओं की स्वास्थ्य
भारत में महिलाओं की स्वास्थ्य

माँ एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से ही जीवन का आभास होता है। समर्पण ही जिसका दूसरा नाम है। जिसके बिना हमारे जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है। हमारे यहां महिला को जीवनदायिनी देवी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें शक्ति का अवतार माना जाता है। फिर भी उन्हीं महिलाओं के स्वास्थ्य की अनदेखी हमारे देश में की जाती है। महिला न सिर्फ एक परिवार की बल्कि किसी भी देश एवं समाज के विकास की कर्णधार होती हैं।

जीवन की सूत्रधार है महिलाओं के जीवन की रक्षा नगण्य

जो जीवन की सूत्रधार है उसके स्वास्थ्य एवं जीवन की रक्षा नगण्य है। हमारे देश में 15 से 49 वर्ष की महिलाऐं सबसे ज्यादा एनीमिया अर्थात खून की कमी की बीमारी से ग्रसित होती है। अर्थात किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक में हमारे देश की आधी आबादी अस्वस्थ होती है। जो उनके विकास एवं प्रजनन की उम्र होती है। ऐसे में एक स्वस्थ बच्चा, परिवार एवं स्वस्थ देश का निर्माण कैसे संभव होगा। जब जन्मदात्री माँ ही अस्वस्थ होगी तो उसके कोख में पलने वाला बच्चा कैसे स्वस्थ होगा। और कैसे एक स्वस्थ एवं विकसित देश की अर्थव्यवस्था का निर्माण होगा। यह एक सर्वविदित सत्य है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओ का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान

भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओ का योगदान
GETTY IMAGE भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओ का योगदान

अंतर्राष्ट्रीय संस्था ऑक्सफेम के एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं द्वारा किये गए घर के काम का मूल्य भारतीय अर्थव्यवस्था में 3.1% है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के मुताबिक भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान करीब 32% है। जिसमें एक महिला अपने माता पिता (वृद्ध वर्ग), पति ( युवा वर्ग) एवं बच्चों (आगामी भविष्य) की अर्थात तीनों वर्गो का ध्यान रखती है। यदि एक महिला घर में इन सबकी देखभाल में अपना योगदान न करे । तो सरकार को बूढ़ों एवं बच्चों की देखभाल पर एक बड़ी धनराशि का व्यय करना होगा। ऐसे में महिलाओं का स्वस्थ होना कितना आवश्यक है ये हमें ही तय करना होगा। आखिर क्यों एक महिला भूख लगने पर भी सबसे अंत में ही खाना खाने को विवश है?

सामाजिक विचारधारा

यह एक विचारणीय प्रश्न है। चूँकि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है जहाँ पुरुषों को जन्म से लेकर जीवन पर्यन्त वरीयता प्रदान की जाती है।उनके खाने-पीने से लेकर स्वास्थ्य सम्बन्धी छोटी बड़ी हर जरुरत का ध्यान रखा जाता है । वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को जन्म से ही यह शिक्षा दी जाती है कि उनकी पहली जिम्मेदारी खुद के प्रति नहीं बल्कि पति एवं बच्चो के प्रति है जिसके कारण वो चाहकर भी खुद के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाती हैं। जिसके परिणामस्वरूप आज हमारे देश में पांच वर्ष से कम के 38 प्रतिशत बच्चे विकासहीनता से प्रभावित हैं जिसमें बच्चों की लंबाई पोषक तत्वों की कमी के कारण अपनी उम्र से कम रह जाती है और इससे उनकी मानसिक क्षमता पर बुरा प्रभाव पडता है।

एनीमिया से दुनियाभर में 8000 करोड़ से अधिक महिलाएं प्रभावित

एनीमिया से दुनियाभर में 8000 करोड़ से अधिक महिलाएं प्रभावित हैं। अनुमानतः भारत में लगभग 52% महिलाएँ एनिमिक होती है। जो की हमारे देश के विकास के लिए अत्यंत भयावह है। निःसंदेह हमारी सरकारों द्वारा इस और ध्यान दिया जा रहा है लेकिन यह प्रयाश पर्याप्त नहीं हैं। इस दिशा में अभी और ध्यान देने एवं सुधर करने की आवश्यकता है। क्योंकि कहा जाता है स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का वास होता है। अतः स्वास्थ्यपरिवार स्वस्थ समाज एवं स्वस्थ देश के लिए स्वस्थ माँ का होना अत्यंत आवश्यक है सिर्फ गर्भधारण के दौरान ही माँ का ध्यान रखने मात्र से कभी भी एक स्वस्थ बच्चे का जन्म नहीं हो सकता है।अतः हमें अपनी सोच में अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है क्योंकि इसके बिना एक स्वस्थ महिला संकल्पना मात्र कल्पना ही रह जाएगी ।

“Where there is respect for woman ; there will be the presence of divine”
The Vedas

मधु गुप्ता चेयरमैन
डी एस एच आर डी

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