हम अगर घर की लक्ष्मी है तो अपनी अस्मिता के रक्षार्थ हमें खुद दुर्गा बनना होगा:
हम अगर घर की #लक्ष्मी है तो अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए हमें खुद ही #दुर्गा भी बनना होगा।
सरकार से क्या होगा या सजा देने से क्या होगा? कितनों को हम सजा देंगे, आप और हम आखिर कितने कानून बनाएंगे ? सामाजिक बदलाव के लिए कितने और कानूनों की जरूरत पड़ेगी हमें? आखिर हर बात का ठीकरा सरकार और किसी समुदाय विशेष के ऊपर छोड़ देना क्या सही मानसिकता का परिचायक है?
हम बेटियों को लड़ना सिखाएं
शायद हमें अपनी सोच को बदलना होगा। इस बदलाव की शुरुआत समाज में एक मां ही कर सकती है और कोई नहीं। हम अपनी बेटियों को ऐसी चीजों से लड़ना सिखाएं। उन्हें इतना मजबूत बनाएं कि कोई भी उन पर गलत नजर ना उठा सके। और इसके साथ-साथ लड़कों को भी अच्छे संस्कार दें। और यह हर धार्मिक समुदाय के लोगों के लिए जरूरी भी है ।
मुख्यतः हम अपनी बेटियों को इस कदर बांध देते हैं कि ऐसे बुरे वक्त में लड़ने की बजाय वे दूसरों से सहायता की आस लगा बैठती हैं। हमारी बेटियां और खुद हम वहीं सब कुछ हार जाते हैं हमें अपनी बेटियों के प्रति दोहरी मानसिकता को भी बदलना होगा। किसी और को दोष देने की बजाय खुद से खुद की मानसिकता में बदलाव करना होगा। और यही समाज में बदलाव लाने का पहला नियम भी है।
“मां” समाज की मजबूत इकाई
एक “मां” समाज की वह मजबूत इकाई जिसके दम पर समाज देश और विश्व बदलाव करता है या अग्रसर होता है। यदि हमें अपनी आत्मरक्षा हेतु लड़ना आता है और खुद का बचाव करना अच्छे से पता होता है तो क्या हमें कभी किसी से भी डरने की जरूरत पड़ेगी?
जब हम नारी समाज समाज के साथ-साथ सेना में भी अपना वर्चस्व कायम कर सकते हैं तो क्या हम अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए दुर्गावती या लक्ष्मीबाई नहीं बन सकते? दुर्गावती या लक्ष्मीबाई ऐसी एक दिन में ही नहीं बनी बल्कि बचपन से ही उन्हें हर तरह से लड़ने की कला सिखाई गई और यह जज्बा हम मां ही अपनी बेटियों को दे सकती हैं
हमें बेटियों को आत्मरक्षा की कला सिखाना जरूरी
बेटियों को आत्मरक्षा की कला सिखाना इसलिए भी जरूरी है कि सामने वाले से आप अपनी आत्मरक्षा की गुंजाइश नहीं कर सकती। क्योंकि हर किसी की अपनी मानसिकता आचार- विचार भिन्न-भिन्न होते हैं। इसलिए बेहतर यही है कि शुरुआत दोनों तरफ से की जाए। हम अपनी बहू-बेटियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाए और साथ ही साथ सामाजिक विचारधारा को भी बदलने की शुरुआत करें।
एक बेहद अहम सवाल कमियां किस वर्ग, संस्था, समाज, धर्म, समुदाय, युग या काल में नहीं रहे,पर क्या इससे उस समुदाय के सभी को गलत ठहरा देना सही है?
महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़े
और आखिरी में कानूनों की लिस्ट पढ़कर बताइए और कितने कानूनों की जरूरत पड़ेगी हमें। महिलाओं के खिलाफ अपराध, बलात्कार, हत्या, घर या कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, अपहरण और पति, रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, एक महिला पर हमला और यौन तस्करी है।
आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में महिलाओं के खिलाफ लक्ष्मी 3.29 मामले दर्ज किए गए। 2016 में इस आंकड़े में 9,711 की बढ़ोतरी हुई और इस दौरान 3.38 मामले दर्ज हुए। इसके बाद 2017 में 3.60 मामले दर्ज किए गए। साल 2015 में बलात्कार के मामले 34,651 मामले, और 2016 में बलात्कार के 38,947 मामले और 2017 में ऐसे 32,559 मामले दर्ज किए गए।
महिला सुरक्षा हेतु कानूनों की सूची
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1-हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856
2-भारतीय दंड संहिता 1860
3-मातृत्व लाभ अधिनियम 1861
4-क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872
5-विवाहित महिला संपत्ति अधिनियम 1874
6-जन्म, मृत्यु और विवाह पंजीकरण अधिनियम 1886
7-बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम 1929
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8- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948
9- खान अधिनियम 1952 एवं कारखाना अधिनियम 1948
10- विशेष विवाह अधिनियम 1954
11- हिन्दू विवाह अधिनियम 1955
12- हिन्दू उत्राधिकार अधिनियम 1956
13-अनैतिक देह व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956
14- दहेज निषेध अधिनियम (रोकथाम) अधिनियम 1956
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15- मातृत्व लाभ अधिनियम 1961
16- विदेशी विवाह अधिनियम
17. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971
18- भारतीय तलाक अधिनियम 1969
19- आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973
20- समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976
21- महिलाओं का उत्पीड़न प्रतिनिधित्व “रोकथाम” अधि, 1986
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22- मुस्लिम महिलाओं तलाक पर अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 1986
23- सती आयोग रोकथाम अधिनियम 1987
24- राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990
25- लिंग चयन निषेध अधिनियम 1994
26- घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 से महिलाओं का संरक्षण
27- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012
28- वर्क प्लेस एक्ट 2013 में महिलाओं का यौन उत्पीड़न, संरक्षण अधिनियम आदि
लेखक: मधु गुप्ता
डी एस एच आर डी